Sunday, February 19, 2023

'दीपदान' by डॉ रामकुमार वर्मा


'दीपदान'

डॉ रामकुमार वर्मा

Q.1:- दीपदान' की कथावस्तु (सारांश) अपने शब्दो में लिखिए ।

उत्तर:- डॉ. रामकुमार वर्मा ने ऐतिहासिक नाटकों की रचना करके हिन्दी नाट्य-साहित्य में अपना नाम अमर कर लिया है। इन नाटकों के माध्यम से उन्होंने भारतीय संस्कृति को जीवित कर दिया है। 'दीपदान' डॉ. रामकुमार वर्मा का एक प्रसिद्ध एकांकी है। इस एकांकी में उन्होंने बलिदान और त्याग की मूर्ति पत्रा धाय की ऐतिहासिक गौरव गाथा का चित्रण किया है संक्षेप में दीपदान' एकांकी का कथा इस प्रकार है :-

 दीपदान उत्सव का आयोजन चित्तौड़गढ़ के राणा संग्राम सिंह की मृत्यु के पश्चात् चित्तौड़गढ़ के वास्तविक उत्तराधिकारी का प्रश्न उठा। वास्तव में राज्य संग्राम सिंह के पुत्र कुँवर उदयसिंह को मिलना चाहिए था किन्तु उदय सिंह अल्पवयस्क था। अतः उदयसिंह के संरक्षक के रूप में, संग्राम सिंह के भतीजे बनवीर को चित्तौड़गढ़ की गद्दी सौंप दी गई। बनवीर बड़ा दुष्ट था। वह राज्य को अपने अधिकार में करना चाहता था। अतः उसने उदय सिंह की हत्या का षड्यन्त्र रचा और मयूरपक्ष नामक कुण्ड में दीपदान के उत्सव का आयोजन किया। बनवीर के षड़यंत्र की जानकारी पन्नाधाय को पता चल गया। वह तुरंत उदय सिंह की रक्षा के लिए व्याकुल हो उठी। उदयसिंह की जिद कुँवर उदय सिंह ने दीपदान उत्सव में जाने की जिद की, किन्तु पन्नाधाय ने उन्हें उत्सव में नहीं जाने दिया। वे रूठकर सो गए। इसी बीच सोना नामक दासी उदय सिंह को उत्सव में ले जाने के लिए आई किन्तु पन्ना ने उसको फटकारकर भगा दिया।

इसके बाद पन्ना का पुत्र चन्दन आया। पन्ना ने उदय सिंह को वहाँ से बाहर भेज देने की योजना तैयार की और अपने पुत्र को उदय सिंह के साथ सुला दिया। पन्ना धाय ने समारोह का लाभ उठाया और उदय सिंह को कीरतवारी की टोकरी में छिपाकर किले के बाहर सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया । कीरतवारी के जाने के बाद बनवीर अपने हाथ में नंगी तलवार लेकर उदय सिंह के कक्ष में आया। जागीर का प्रलोभन देकर उसने पन्ना को अपने षड़यंत्र में सम्मिलित करने का प्रयास किया किन्तु पन्ना अपने कर्तव्य पर दृढ़ रही। उसने बनवीर द्वारा दिए गए प्रलोभन को ठुकराते हुए कहा. "राजपूतानी व्यापार नहीं करती, महाराज! वह या तो रणभूमि पर चढ़ती है या चिता पर ।" इसी के साथ ही वह बनवीर से उदय सिंह के प्राणों की भिक्षा माँगने लगी। बनवीर ने पन्ना की एक न सुनी। हारकर पन्ना ने कटार से बनवीर पर प्रहार किया, किन्तु बनवीर ने उसके प्रहार को असफल कर दिया।

इस सारी घटना ने बनवीर को बहुत क्रोधित कर दिया। क्रोधित बनवीर ने भान्तिवश पन्ना धाय के पुत्र चन्दन को ही उदयसिंह समझा और पन्ना की आँखों के सामने ही उसे तलवार से मौत के घाट उतार दिया। इस स्थल पर बनवीर का संवाद, उसकी क्रूरता का परिचय देने के लिए पर्याप्त है-

"यही है मेरे मार्ग का कण्टक। आज मेरे नगर में स्त्रियों ने दीपदान किया है। मैं भी यमराज को इस दीपक का दान करूंगा यमराज! लो इस दीपक को यह मेरा दीपदान है।"

 बनवीर के इस क्रूर काण्ड और पन्ना के अपूर्व त्याग के साथ ही एकांकी समाप्त हो जाता है।

 Q 2:-  एकांकी 'दीपदान' के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए उसके शीर्षक की सार्थकता अथवा औचित्य पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर: उद्देश्य :- एकांकीकार का मुख्य उद्देश्य एकाकी के माध्यम से पाठकों अथवा दर्शकों के समक्ष पन्ना धाय के देश-प्रेम और राष्ट्रहित के लिए अपने व्यक्तिगत और पारिवारिक हितों के बलिदान और त्याग को दिखलाना है। त्याग और बलिदान से मनुष्य का चरित्र महान बन जाता है। दूसरी ओर स्वार्थलिप्सा से मनुष्य बनवीर की भाँति निचे गिर जाता है। एक भारतीय नारी के त्याग और बलिदान के गौरव को व्यक्त करने के साथ इसमें सचाई और ईमानदारी को अभिव्यक्ति मिली है। स्वामिभक्त के समक्ष अपना स्वार्थ नगण्य है। उसके समक्ष बड़ा-से बड़ा बलिदान किया जा सकता है। पन्ना का यह कथन उसकी स्वामिभक्ति का पुष्ट प्रमाण है। "मेरे महाराणा का नमक मेरे रक्त से भी महान है। नमक से रक्त बनता है, रक्त से नमक नहीं।" इसी प्रकार की भावना 'सामली' और कीरतवारी की भी है। लेकिन, इन सबके ऊपर पन्ना का बलिदान है। उसमें कितनी भक्ति है, श्रद्धा है, विश्वास है नारी अपने मातृत्व को बलिदान की बलिवेदी पर चढ़ा दे ऐसा विरला ही उदाहरण मिलता है। इस एकांकी की उपर्युक्त विशेषताएँ काफी महत्त्वपूर्ण है।  इस तथ्य को स्पष्ट करना 'दीपदान' एकांकी का मुख्य उद्देश्य है। इसीलिए यह सर्वप्रिय एकांकी है।

शीर्षक की सार्थकता :- किसी भी एकाकी का शीर्षक संक्षिप्त कौतुहलवर्धक एवं कथानक से जुड़ा होना चाहिए। 'दीपदान' शीर्षक इस कसौटी पर खरा उतरता है एकांकी को शुरू से अंत तक पढ़ने पर पाठक के मन में कौतुहलता बनी रहती है।

पन्ना अपने जीवन-दोष को रक्त की धारा में तैराकर एकांकी को पूरा करती है तथा महाराणा सांगा के कुलदीपक उदय सिंह को प्राण रक्षा करती है । इस प्रकार दीपदान' ही एकांकी का कुलदीप है। "दीपदान" यह एक उपर्युक्त और सार्थक शीर्षक है। यह शीर्षक अपने दो रूपों में चित्रित है एक स्थूल रूप में तथा दूसरे प्रतीक के रूप में । स्थूल रूप में यह दीपदान इस रूप में प्रयुक्त है कि आलोक पर्व के अवसर पर चित्तौड़ की किशोरियाँ दीप जलाकर मयूर कुंड में उसका दान कर रही हैं। वे बालाएँ "तुलजा भवानी की पूजा में दीपदान करके नाच रही है।" दूसरे प्रतीक के रूप में यह दीपदान पन्ना धाय के बालक- पुत्र की मृत्यु के रूप में उसके कुल दीपक का दान है। इसीलिए तो वह कहती है- "आज मैने भी दीपदान किया है। दीपदान अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर प्रवाहित कर दिया है।" यह द्वय अर्धक दीपदान संपूर्ण एकांकी के कथ्य और उद्देश्य का केंद्रबिंदु होकर पूर्ण रूप से सफल, सार्थक, सटीक और उपयुक्त है।

इस प्रकार एकांकी के शीर्षक के दृष्टिकोण से दीपदान' एक सफल एकांकी है। दीपदान ही सबसे उपयुक्त शीर्षक है ।

 

Q 3. पन्नाधाय का चरित्र चित्रण अपने शब्दो में करो।

उत्तर:- एकांकी के प्रधान नायिका पन्ना धाय है | वह महाराणा के छोटे पुत्र उदयसिंह की धाय माँ तथा संरक्षिका है । वह अत्यंत ममतामयी, कर्तव्यनिष्ठ, स्वामिभक्त, बुद्धिमती तथा दूरदर्शी है । कुँवर उदयसिंह के प्राणों की रक्षा के लिए वह अपने इकलौते पुत्र चंदन की बलि चढ़ा देती है | वह अपने हृदय पर पत्थर रखकर अपने कर्तव्य का पालन करती है | उसके अंदर किसी प्रकार का भी लालच नहीं है | उदय सिंह का पालन पोषण तथा उसके - जीवन की रक्षा करना ही उनके जीवन का उद्देश्य है |

i) राजभक्ति - पन्नाधाय में अद्वितीय राजभक्ति है | राजघराने के सभी लोग भूल जाते है कि उदयसिंह राज्य का वास्तविक उत्तराधिकारी है परंतु उसकी राजभक्ति सदैव सजग रहती है वह महाराणा सांगा का नमक खाकर उसे धोखा नहीं दे सकती है |

ii) विवेक और दूरदर्शिता - पन्ना मे विवेक और दूरदर्शिता है अपने पुत्र का बलिदान अपनी इच्छा से कर वह अपने स्वामी के पुत्र की रक्षा करती है ।

iii) साहसी - पन्ना धीर साहसी तथा निर्भीक राजपूत वीरांगना है । वह उदय सिंह को नृत्य प्रेमी न बनाकर युद्ध प्रेमी बनाना चाहती है।

iv) अपूर्व त्याग - पन्ना धाय का त्याग भारतीय इतिहास का अपूर्व - त्याग है | कुंवर उदयसिंह के प्राणों की रक्षा के लिए वह अपने इकलौते पुत्र चंदन की बलि चढ़ा देती है |

v) वीरांगना : पन्ना एक वीरांगना क्षत्राणी है। वह अपने कर्तव्य की रक्षा के लिए शत्रु से लड़ना भी जानती है। वह बनवीर पर तलवार से प्रहार भी करती है।

vi) निर्लोभी - पन्ना में किसी प्रकार का लोभ नहीं है। बनवीर उसे अपनी ओर मिलाने के लिए अनेक प्रलोभन देता है, किन्तु वह उसके प्रलोभन में न आकर अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान है।

vii) धैर्यवती : - पन्ना में धैर्य कूट-कूटकर भरा हुआ है। वह पुत्र का वध होते अपनी आँखों से देखती है किन्तु कर्तव्य पथ से थोड़ा भी विचलित नहीं होती है।

viii )  चतुर और दूरदर्शी :- पन्ना अत्यन्त ही चतुर और दूरदर्शी है। वह बनवौर के षड्यंत्र को भाँप लेती है और उदय सिंह को पहले हो सुरक्षित स्थान पर भेज देती है ।

           वह कर्तव्यनिष्ठ तथा एक आदर्श भारतीय नारी है | वह एक वीरांगना भी हैं जो बनवीर जैसे दुष्ट से मुकाबला करने में भी नहीं हिचकती है | तथा अपनी वाकपटुता से बनवीर को निरुत्तर कर देती हैं |

Q 4 :-सोना का चरित्र - चित्रण अपने शब्दों में कीजिए ।

उत्तर:- सोना दीपदान एकांकी की दूसरी प्रमुख पात्र है | उसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

i)सरल स्वभाव - सोना स्वभाव से सरल है वह राज महल में होने वाले षडयंत्रों से अनभिज्ञ है | पन्ना के सम्मुख नृत्य की बात करना ,बनवीर द्वारा कही गई बातों को खेल-खेल में पन्ना को बता देना, मयूरपक्ष कुंड उत्सव की बातों का वर्णन करना उसके सरल स्वभाव के ही प्रमाण है |

ii)अत्यंत सुंदर - सोना रावल स्वरूप सिंह की अत्यंत रूपवती लड़की है | उसकी आयु सोलह वर्ष है वह कुंवर उदय सिंह के साथ खेलती है तथा आयु में उससे दो वर्ष बड़ी है |

iii) सीधी-सादी युवती :- राजमहल से सम्बन्धित होते हुए भी वह वहाँ चलने वाले षड्यंत्रों से अनभिज्ञ है। पन्ना के सम्मुख नृत्य करना, बनवीर द्वारा कही गई बातों को पन्ना को खेल-खेल में बता देना, मयूर पक्ष कुण्ड के उत्सव की बातों को बताना उसके सीधे-सादेपन का हो प्रमाण है।

iv) दिग्भ्रमित :- सोना अपने आपको स्थिर नहीं रख पाती। वह दिग्भ्रमित सी प्रतीत होती है। उसके भ्रमित होने का पता इसी बात से चलता है कि वह एक और तो कुँवर उदय सिंह को चाहती है और दूसरी तरफ बनवीर के प्रलोभन में आ जाती है।

v ) शिष्टाचारी एवं वाकपटु - सोना बोलने में निपुण व राजमहल के शिष्टाचार 'परिचित है उसके शिष्टाचार व वाकपटुता का उस समय पता चलता है जब वह महल में कुंवर उदय सिंह को दीपदान उत्सव के लिए लेने आती है महल में प्रवेश कर वह पन्नाधाय को प्रणाम करती है और उनसे उदयसिंह के विषय में पूछती है पन्ना के कहने पर वे थक गए हैं सोना चाहते हैं "तब वह उत्तर देती है मैं भी तो सोना हूँ" ""

vi) अस्थिर - सोना स्वयं को स्थिर नहीं रख पाती वह भ्रमित से दिखाई पड़ती है क्योंकि वह एक ओर कुंवर उदयसिंह से प्रेम करती है और दूसरी ओर बलवीर के प्रलोभन में आ जाती है । इससे यह पता चलता है की उसका मन अस्थिर था ।

Q 5 :- 'दीपदान' एकांकी के आधार पर बनवीर का चरित्र चित्रण कीजिए।

उत्तर : 'दीपदान' एकांकी में जहाँ पन्ना धाय के महान बलिदान को चित्रित किया गया है जो कर्त्तव्य की बलिवेदी है अपने एकमात्र पुत्र का भी बलिदान देती है, वहीं दूसरी ओर बनवीर का चरित्र है जो  दीपदान एकांकी का खलनायक है। वह चित्तौड़ के महाराजा संग्राम सिंह के भाई पृथ्वी सिंह का दासीपुत्र है। निष्कंटक राज्य करने के उद्देश्य से राणा सांगा के 14 वर्षीय पुत्र कुँवर उदय सिंह का वध करने का षड्यंत्र करता है। उसके चरित्र को निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

(1) महत्त्वाकांक्षी :- बनवीर चित्तौड़ के राजा राणा साँगा के भाई पृथ्वीराज का दासी पुत्र था। : राणा साँगा की मृत्यु के पश्चात् उसे राणा साँगा के पुत्र उदय सिंह का संरक्षक और राज्य का संचालक बनाया गया था; परन्तु बनवीर राज्य के वास्तविक उत्तराधिकारी उदय सिंह को मारकर स्वयं ही राज्य प्राप्त करना चाहता था। पन्ना धाय जब उससे उदयसिंह के प्राणों की भीख माँगती है तो वह उसे दुत्कारता हुआ कहता है।

"दूर हट दासी ! यह नाटक बहुत देख चुका हूँ। उदय सिंह की हत्या ही तो मेरे राजसिंहासन की सीढ़ी होगी। जब तक वह जीवित है, तब तक सिंहासन मेरा नहीं होगा।"

(2) क्रूर एवं हिंसक:- बनवीर अत्यन्त निर्दयी और हिंसक प्रवृत्ति का शासक था। वह स्वयं राज्य का उत्तराधिकारी न होते हुए भी, स्वयं ही निष्कंटक राज्य करना चाहता था। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने अपने भाई विक्रमादित्य की निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी। उसकी इस निर्दयता की चरम सीमा उस समय प्रकट होती है, जब वह अपने स्वार्थ के लिए एक अबोध बालक चन्दन की भी हत्या कर देता है।

(3) कूटनीतिज्ञ :- अपनी दूषित महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए वह किसी भी नीति को प्रयुक्त करना अनुपयुक्त नही समझता है। उदय सिंह की हत्या में सहयोग प्राप्त करने के लिए वह पन्ना को जागीर का लोभ देना चाहता है। जब पन्ना उसका विरोध करती है तो वह उसे भयभीत करने का भी प्रयास करता है । नाच-गाने की योजना बनाकर अपनी जनता का ध्यान दूसरी ओर आकर्षित कर दिया और साम, दाम, दण्ड एवं भेद की नीतियों का प्रयोग करते हुए, अपनी स्वार्थ सिद्धि का प्रयास किया ।

(4) विलासी :- बनवीर विलासी शासक था। उसे नाचने गाने का शौक था। दीपदान' के उत्सव पर उसने रावल की पुत्री सोना को भी अपने पैरों में नूपुर बांधकर नाचने के लिए प्रेरित किया। बनवीर के चरित्र की इस कमजोरी पर क्षुब्द होकर ही पन्ना धाय, सामली के सम्मुख कहती है। "विलासी और अत्याचारी राजा कभी निष्कण्टक राज्य नहीं कर सकता है।"

(5) विश्वासघाती:- बनवीर में मानवीयता का सर्वशा अभाव है। उसका नरित्र अवगुणों की खान है। वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति में ही विश्वास करता है। अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए अपने भाई की हत्या कर देता है और राज्य के वास्तविक उत्तराधिकारी की हत्या का षडयंत्र कर अपने कुल और अपने राज्य के साथ भी विश्वासघात करता है।

(6) कायर :- बनवीर एक कायर पुरुष है। सोए हुए अपने भाई की हत्या करना उसकी कायरता का प्रमाण है। उसकी कायरता का एक अन्य घृणास्पद प्रमाण उस समय सामने आता है, जब वह उदय सिंह के धोखे में सोते हुए बालक चन्दन की भी हत्या कर देता है। सोते हुए बालक पर वार करते हुए भी उसका हृदय उसे नहीं धिक्कारता और अपनी कायरता को अपना पराक्रम समझते हुए वह चन्दन को मार डालता है।

Q 6 :- 'दीपदान' एकांकी के आधार पर कीरत बारी का चरित्र चित्रण कीजए। M. P - 2020

उत्तर - 'दीपदान' एकांकी एक ऐतिहासिक एकांकी है। इस एकांकी में कीरत बारी महत्त्वपूर्ण पात्रों में से एक है। एकांकी के आधार पर कीरत बारी को निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती है :-

(1) सच्चा सेवक :- कीरतवारी राज परिवार का एक तुच्छ सेवक है। वह जूठे पत्तल उठाने का कार्य करता है. परन्तु उसमें राज-भक्ति और स्वामी भक्ति की भावना है। वह पन्ना के अभियान में पूरी तरह से सहयोग करके उदय सिंह को बाहर ले जाता और कुँबर उदय सिंह को बचा लेता है।

(2) विवेकशील :- कीरत बुद्धिमान एवं विवेकशील है, जब पन्ना कीरत से बाहर के बारे में पूछती है, तो वह तुरन्त पन्ना से कहता है कि बाहर सिपाहियों का डेरा लगा हुआ है। मैं तो इसलिए यहाँ आ गया कि सबलोग मुझे जानते हैं कि मैं जूठे पत्तल उठाने वाला हूँ और इस तरह वह अपनी विवेकशीलता से बाहर के बारे में पन्ना को सब कुछ संकेत कर देता है।

(3) स्वदेश-प्रेम :- कीरत में स्वदेश के प्रति गहरा प्रेम दिखाई देता है। वह पन्ना से कहता है कि कुँवर युगों- युगों तक जीवित रहें। जब से कुँवर राज महल में आये हैं, तब से महल में उजियारा फैल गया है। जब कुँवर राजा होगे, तो सभी लोग उनकी बंदगी करने के लिए यहाँ आयेंगे। मैं उनके लिए अपनी जान तक हाजिर कर सकता हूँ। परन्तु जब उसे पता चलता है कि कुँवर के प्राण संकट में है, तो वह तलवार उठाने के लिए भी तैयार हो जाता है।

(4) निर्भीक और साहसी :- कीरत बारी को जब पन्ना के माध्यम से कुँवर के जीवन पर खतरे की सूचना मिलती है, तो वह पन्ना के हर हुक्म को मानने के लिए तैयार हो जाता है। वह जानता है कि महल के बाहर खतरा है. लेकिन वह निर्भीकता और साहस के साथ कुँवर जी को टोकरी में लाकर उन पर गीले पत्ते डालकर महल से बाहर निकल जाने को तैयार हो जाता है और वह कहता है कि मैं राजमहल से कुँवर को लेकर निकल जाऊँगा और सिपाही लोग देखते ही रह जायेंगे। तब पन्ना भी उसके चरित्र की प्रशंसा करते हुए कहती है कि "तो जाओ कीरत। आज तुम जैसे एक छोटे आदमी ने चित्तौड़ के मुकुट को सम्भाला है।"एक तिनके ने राज-सिंहासन को सहारा दिया है। तुम धन्य हो ।"

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