रैदास के पद
रैदास
रैदास के पद पाठ से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण
प्रश्न :-
1.
रैदास का जन्म कहां हुआ था ? उत्तर:- काशी में ।
2.
रैदास के माता-पिता का क्या नाम था ? उत्तर :- पिता का नाम रघु माता का नाम घूरबिनिया था ।
3.
रैदास के गुरु का क्या नाम था ? उत्तर:- रामानंद ।
4.
रैदास के गुरु भाई कौन थे ? उत्तर :- कबीर दास ।
5.
रैदास का पैतृक व्यवसाय क्या था ? उत्तर:- चप्पल बनाने का ।
6.
रैदास का जन्म किस परिवार में हुआ था ? उत्तर:- चर्मकार
परिवार था ।
7.
रैदास गृहत्यागी संत या गृहस्थ ? उत्तर :- गृहत्यागी ।
8.
रैदास ने कैसे ज्ञान प्राप्त किया ? उत्तर:- सत्संग से ।
9.
रैदास किस प्रवृत्ति के थे ? उत्तर :- संत स्वभाव
।
10.
रैदास को किस बात में आनंद आता था ? उत्तर :- प्रभु
की सेवा मे ।
11.
रैदास किस परंपरा के कवि थे ? उत्तर :- संत परम्परा ।
12.
रैदास जी ने समाज की शुद्धि के माध्यम क्या बनाया
? उत्तर :- अपनी रचनाओ को ।
13.
रैदास जी ने अपने और अपने
प्रभु के बीच कैसे संबंधों पर चर्चा की है ? उत्तर :- चंदन
और पानी के |
14.
चकोर चांद को क्यों निहारता रहता है ? उत्तर :- क्योंकि
चकोर चांद से प्रेम करता है ।
15.
दीपक और बाती में दीपक और बाती कौन है ? उत्तर :- दीपक
प्रभु है और बाती रैदास ।
16.
दीपक का धर्म क्या है ? उत्तर :- संसार
को प्रकाशमान करना ।
17.
रैदास की भक्ति कैसी है ? उत्तर :- समर्पण
भाव की ।
18.
रैदास जी ने भक्ति मार्ग में सबसे बड़ी बाधा
किसे माना है ? उत्तर :- मन को ।
19.
रैदास जी के अनुसार ईश्वर की उपस्थिति कहां है
? उत्तर :- संसार के घट घट मे ।
20.
रैदास के निरंजन देवा कैसे हैं ? उत्तर :- रैदास
के निरंजन देवाघट घट व्यापी है ।
21.
रैदास के प्रभु कैसे हैं ? उत्तर :- रैदास
के प्रभु निरंजन है जिनका कोई रूपरंग नहीं है |
22.
रैदास के प्रभु के चरण और शीश कहां तक है ? उत्तर :- रैदास
के प्रभु का चरण पाताल और शीश आसमान को छूता है ।
23.
रैदास जी क्या मूर्ति पूजा का समर्थक थे ? उत्तर :- नही वह
मूर्ति पूजा के विरोधी थे ।
24.
रैदास जी के अनुसार वेद का निर्माण कैसे हुआ ? उत्तर :- प्रभु
के सांसो से ।
25.
रैदास के अनुसार हमारे मन के संसय की गांठ कैसे
छूटेगी ? उत्तर :- राम की कृपा से ।
26.
पंच विकार क्या है ? उत्तर :- काम, क्रोध, मोह, लोभ, मद यह सभी पांच वीकार है ।
27.
रैदास जी ने किसे चेताया है ? उत्तर :- रैदास
ने अपने मन को चेताया है ।
28.
बाल्मीकि कौन है ? उत्तर :- आदिकाल
के ऋषि तथा रामायण के रचयिता |
29.
जीव उच्च पद को कैसे प्राप्त करता है ? उत्तर :- प्रभु
की कृपा से ।
30.
गंगा का पर्यायवाची क्या है ? उत्तर :- सुर
सरिता |
31.
संत रैदास ने किससे विप्र कहां है ? उत्तर :- रैदास
के उन लोगों को विप्र कहां है जो षटक्रम तो करते हैं लेकिन उनके मन में भगवान के
प्रति कोई आस्था नहीं होती ।
32.
रैदास जी चित को किसे देखने के
लिए कहा है ? उत्तर :- बाल्मीकि को |
33.
रैदास जी ने किन किन रूपों में अपने प्रभु से
अपने संबंधों की व्याख्या की है ? उत्तर :- रैदास ने माना
है कि प्रभु चंदन है तो वह पानी है,प्रभु बादल हैं तो वह मोड़ है,प्रभु चंद्रमा है तो वह चकोर है, प्रभु दीपक है तो वह बातें हैं ।
34.
रैदास के अनुसार परस्पर प्रीति कैसे होगी ? उत्तर :- रैदास
के अनुसार जब मनुष्य अहंकार तथा अपने मन की मलिनता को त्याग देगा तब उसके और ईश्वर
के बीच प्रीति संबंध स्थापित हो जाएगा ।
35.
रैदास ने किसे सारहिन और निरर्थक बताया है ? उत्तर :- जीवन
को ।
36.
रैदास के प्रभु कैसे हैं ? उत्तर :- रैदास के प्रभु निर्गुण निराकार है ।
37.
रैदास जी की रचनाओं की क्या विशेषता है ? उत्तर :- इनकी
रचनाओं से जनमानस पर एक अनोखा प्रभाव पड़ता है ।
38.
क्या रैदास के राम दशरथ नंदन श्री राम है ? उत्तर :- नहीं ।
वह निर्गुण निराकार राम के नाम की भक्ति करते हैं ।
39.
रैदास किस प्रकार प्रभु की भक्ति करना चाहते
हैं ? उत्तर :- रैदास दास बनकर प्रभु की भक्ति करना चाहते हैं |
40.
किसे प्रेमाश्रय तथा ज्ञानश्रय के बीच का सेतु
कहा जाता है ? उत्तर :- संत रैदास |
Long question
1. रैदास
के पद नामक पाठ का मूल संदेश क्या है?
उत्तर:- संत रैदास संत परंपरा के कवि हैं। रैदास जी ने समाज में व्याप्त बुराइयों को अपनी रचनाओं के माध्यम से दूर करने का प्रयास किया है । वह मूलत भक्त है बाद में कवि । संत कवियों ने आम आदमी तक अपने विचारों को फैलाने के लिए कविताओं का सहारा लिया । संतों की वाणी मधुर तथा संवेदनशील
होती हैं दूसरों के दुख में दुखी तथा दूसरों के खुशी में खुश होते हैं । जीव मात्र
के दुर्दशा को देखकर उनका अंतर मन दुखित हो जाता है वह यह नहीं चाहते कि हम जिस
दुख से दुखी हैं संसार भी उसे दुख से दुखी हो ।संत कवि समाज को अपनी रचनाओं के
माध्यम से यह समझाने का प्रयास करते हैं तथा उनके चेतना को जागृत करने का प्रयास
करते हैं जिससे हम अपने मन के विकारों को नष्ट कर सके तथा अपनी वाणी को शुद्ध कर
समाज के निर्माण में सहयोग प्रदान करें । इस कविता का मूल उद्देश्य यही है।
2. रैदास
की भक्ति भावना का वर्णन कीजिए?
उत्तर:- भक्ति काल के संत काव्य परंपरा में लिखने वाले कवियों में रैदास का नाम काफी महत्वपूर्ण है । कबीर के बाद यदि किसी ने समाज को आईना दिखाया तो वो रैदास ही थे । उन्होंने अपनी रचनाओं को समाज सेवा का तथा समाज सुधार का माध्यम बनाया हमारे समाज
में धर्म में व्याप्त कुरीतियां आडंबर तथा नाना प्रकार के विचार धाराओं का जो
स्वरूप समाज के विकास में बाधक था उनकी उन्होंने आलोचना की है ।वह निर्भीक होकर सच
को सच कहने की हिम्मत रखते थे l रैदास जी की रचना
के आधार पर उनकी भक्ति भावना को इस तरह से व्यक्त किया जा सकता है:-
1) एकेश्वरवाद पर
विश्वास :- रैदास एकेश्वरवाद पर विश्वास करते थे। उनका
कहना है कि ईश्वर एक है पर उनके नाम अलग-अलग हैं वही राम है, वही कृष्ण है, वही
रहीम है, भक्त अपने-अपने अनुसार उसे स्वीकार करते हैं। रैदास जी ने राम तथा कृष्ण
दोनों के नाम का प्रयोग अपने रचनाओं में किया है । वह दशरथ पुत्र श्री राम या
यशोदा नंदन श्री कृष्ण नहीं है । कबीर की तरह राम के नाम को ही सार्थक मानते हैं।
(2) गुरु के प्रति श्रद्धा :- रैदास जी पर
उनके गुरु रामानंद जी का बहुत गहरा प्रभाव है। अपने गुरु के विचारों के प्रसारण का
माध्यम अपनी रचनाओं को बनाया उनके अनुसार गुरु के प्राप्ति के बिना ज्ञान की
प्राप्ति नहीं हो सकती इस संबंध में वह कहते हैं कि :- “गुरु बिन होए न
ज्ञान”
(3) धार्मिक आडंबर का विरोध :- रैदास ने अपनी
रचनाओं में धार्मिक आडंबरों का विरोध किया है । संत काव्य के कवि केवल कवि नहीं थे
वह एक समाज सुधारक भी थे। उनकी बातों को हम उन्हीं के पंक्तियों में देख सकते हैं
वह कहते हैं :- “तोडु ना पाती पूजौ ना देवा सहज समाधि करौ
हरी सेवा”
(4) ईश्वर की व्यापकता पर विश्वास :- रैदास जी ईश्वर
की व्यापकता में परम विश्वास था। उनका यह मानना था कि ईश्वर घट घट व्यापी है
प्रकृति के कण-कण में बसा हुआ है। वह इतना विराट है कि किसी में समा नहीं सकते
उनको समझने के लिए हृदय की विशालता एवं भेद रहित विचार होना चाहिए वह कहते हैं कि
:- “ सब घट अंतरी
रमसि निरंतरि मैं देखत ही नहि जाना”
(5) दास्य भाव :- रैदास जी की
भक्ति दास्य भाव की भक्ति है ।वह अपने आप को दुनिया का सबसे कमजोर तथा निरिह जीव
मानते हैं। उनके प्रभु सर्वशक्तिमान है वह कहते हैं कि प्रभु की कृपा के बिना जीव
का कोई अस्तित्व नहीं है। समर्पण का भाव रैदास की भक्ति भावना का प्राण है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम यह कह सकते हैं
कि रैदास ने अपना चुनाव के माध्यम से लोगों को जागृत किया तथा उनका विचार है कि
सत्संग एवं त्याग भक्ति के प्राण हैं । अपने प्राणों की रक्षा करने पर ही जीव की
सार्थकता है अन्यथा पत्थर और मानव में कोई अंतर नहीं।